"लज्जा{Lajja}" की समीक्षा नारीवादी नजरिये से
लज्जा |
शायद आडवाणी और अशोक सिंघल जी शौर्य दिवस मानाने में इतने लुप्त हो गए की वे समझ ही नहीं पाए कि जिन देशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनका क्या हश्र होगा? क्योंकि वर्तमान में मुस्लिम समुदाय औरों से कहीं ज्यादा कट्टर है।और हुआ भी यहीं राम के भक्तों के किये की सजा बंगलादेश के उन हिंदुओं और उनकी मासूम बच्चियों को भुगतनी पड़ी जिनका भारत या यहाँ के मंदिर- मस्जिद से कोई लेना-देना था। जमायत-ए-इस्लामी और RSS के कारसेवकों को इतिहास कभी नहीं माफ़ करेगा और धिक्कार है बंगलादेश के उन कम्युनिस्टों पर जो अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा करने के बजाय जमायत-ए-इस्लामी के कुत्ते बन गए।बहरहाल तस्लीमा जी की "लज्जा" पढने के बाद मेरा रोम-रोम सिहर उठा है। हालाँकि क़िताब लिखने के बाद तस्लीमा नसरीन को बंगलादेश से निकाल दिया और पश्चिम बंगाल की प्रगतिशील वामपंथी सरकार ने इसे प्रकाशित करने से रोक दिया। ये बड़ी ही हैरान करने वाली बात है कि बॉलीवुड में किसी डायरेक्टर ने इसपर फिल्म बनाने जहमत नहीं उठाई। ख़ैर, सभी औरतों और लड़कियों को यह यह किताब पढ़नी चाहिए जिससे उन्हें पता चले कि हर बार धर्म का शिकार यहीं आधी आबादी होती है।
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